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निर्भया BBC इंटरव्यू

ahem ahem !
ahem ahem !
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बीबीसी ने निर्भया रेप के आरोपियों का इंटरव्यू के लिए परमिशन माँगा. सब ठीक. इंटरव्यू लिया. सब ठीक.
पर अब – नहीं तुम इंटरव्यू को प्रसारित नहीं करोगे !
रेप क्यू हुआ ? रेप कैसे हुआ ? रेप में किसने कितना योगदान दिया ?
रेप के बारे में वो आरोपियों की पहले क्या राय थी और अब क्या है ?
रेप हुआ पर रेप के अलावा इतनी निर्दयता क्यू ?
क्या वो उनका पहला रेप था ? रेप करने से पहले क्या उन्हें दिल्ली पुलिस का थोड़ा भी डर था ?
लड़की उठाने से पहले वो क्या खोजते है ? किस तरह के कपडे पहने हुई लड़की उनकी पहले पसंद होती है ?
क्या उन्होंने यह सोच लिया था क़ी रेप करने के बाद जिन्दा छोड़ने पर वो पकडे जायेंगे ?

क्या इन सब सवालो का या उन सवालो का (जिन्हे बीबीसी ने पूछा) क्या उत्तर उन आरोपियों ने दिया, हमें वो जानने का हक़ नहीं ?

क्या जो पकडे गए वही एकमात्र दोषी होते है ? क्या हम सब जो आज़ाद है, दूध के धुले है ? क्या हम सबमे भी तमाम निर्भया रेप केस के आरोपियों की तरह ही कितने नरपिशाच छुपे नहीं हुए है ? जो अभी तक पकडे नहीं गए ? क्या हमारे बीच में भी कितने ही नरपिशाच मौजूद नहीं जो कानून से डरते नहीं बल्कि उनसे खेलते है ? उनके लिए कानून भी क्या भण्ड्वो की तरह उनकी मदद नहीं करता ? हमें पता तो चलना ही चाहिए की कितने बड़े नरपिशाच है वो और इस तरह के नरपिशाच किस किस तरह के बिचार रखते है और किस तरह से इनसे बचा जा सकता है. क्यू की हमारी पुलिस और हमारी सरकार तो कुछ करने से रही. सदबुद्धि भारत सरकार को भी कि इंटरव्यू रोकने की कवायद की बजाय कानून ब्यस्था को मजबूत करने के लिए कुछ करना चाहिए. और ईमानदारी से उस पर अमल भी.

मंत्री वेंकैयाः नायडू कहते है की इंटरव्यू को प्रसारित करना एक क्रिमिनल कांस्पीरेसी है हिंदुस्तान को बदनाम करने की. मंत्री जी कौन से इज्जत बची है जिसको बदनाम और बचने की बात करते है आप. थोड़ी शर्म बची हो तो कानून ब्यस्था को फुल प्रूफ करने की सोचिये और कुछ करिये भी. या हम सब केवल लच्छेदार भाषण सुनने के लिए ही आपको बर्दाश्त कर रहे है ?

इस लेख कि हेड लाइन वही जो मैंने २००५ में लिखी थी तब जो दिल्ली में बहुत सारे रेप के मामले अखबारों और TV क़ी सुर्खिया बने हुए थे. लिंक निचे है
o3.indiatimes.com/skjdesk/archive/2005/08/16/222950.aspx

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